मराठी रंगमंच में नायिका के विविध रूप
Keywords:
नारी, नाटक, मराठी, समाज, जीवन, शोषण, पितृसत्ता, रंगमंच, संघर्षAbstract
इस शोधपत्र में उन्नीसवीं सदी से लेकर समकालीन काल तक मराठी नाटकों में स्त्री के बदलते रूपों का अध्ययन किया गया है। मराठी रंगमंच ने सामाजिक सुधार आंदोलनों से प्रेरित होकर बाल विवाह, विधवापन, घरेलू शोषण, लैंगिक असमानता जैसी पितृसत्तात्मक परंपराओं पर प्रश्न उठाए और साथ ही स्त्री को शिक्षा, स्वतंत्रता तथा प्रतिरोध की वाहक के रूप में भी चित्रित किया। शारदा जैसे प्रारंभिक नाटकों ने बाल विवाह की प्रथा को चुनौती दी, वहीं शांतता! कोर्ट चालू आहे और कमला जैसे नाटकों ने स्त्रियों के प्रति अन्याय और कानूनी असमानताओं को उजागर किया। नाटकों में स्त्री के विविध रूप कर्तव्यनिष्ठ पुत्री, पत्नी, माँ, विधवा, कर्मशील महिला और आत्मनिर्भर व्यक्तित्व को प्रस्तुत किया गया है, जो परंपरा और आधुनिकता, निर्भरता और स्वतंत्रता, नैतिकता और सामाजिक सुधार के बीच के संघर्ष को सामने लाते हैं। विभिन्न कालखंडों के आधार पर स्त्री रूपों का विश्लेषण यह स्पष्ट करता है कि मराठी नाटक केवल समाज का दर्पण ही नहीं बने, बल्कि उन्होंने सामाजिक चेतना, विधायी सुधारों और स्त्री गरिमा के सशक्तिकरण की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
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Copyright (c) 2025 Dr. Khandekar Dadasaheb S. (Author)

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